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गणेश-अष्टक


चतुःषष्टिकोट्याख्यविद्याप्रदं त्वां सुराचार्यविद्याप्रदानापदानम् ।
कठाभीष्टविद्यार्पकं दन्तयुग्मं कविं बुद्धिनाथं कवीनां नमामि ॥ १॥

जो चौसठ कोटि (प्रकार) के कहे जाने वाले ज्ञान के दाता हैं, देवताओं के आचार्य द्वारा प्रदत्त ज्ञान के स्रोत हैं, उन कठोर वांछित ज्ञान प्रदान करने वाले दांतों की एक जोड़ी वाले कवियों में बुद्धि के स्वामी कवि को मैं प्रणाम करता हूँ ।

स्वनाथं प्रधानं महाविघ्ननाथं निजेच्छाविसृष्टाण्डवृन्देशनाथम् ।
प्रभु दक्षिणास्यस्य विद्याप्रदं त्वां कविं बुद्धिनाथं कवीनां नमामि ॥ २ ॥

आप ही अपने स्वामी और प्रधान हैं, बड़े-बड़े विघ्नों के नाथ हैं । स्वेच्छा से रचित ब्रह्मांड-समूह के स्वामी और रक्षक भी आप ही हैं । जो दक्षिणा के प्रभु एवं विद्या दाता हैं, कवियों में बुद्धि के स्वामी उन कवि को मैं प्रणाम करता हूं ।

विभो व्यासशिष्यादिविद्याविशिष्टप्रियानेकविद्याप्रदातारमाद्यम् ।
महाशाक्तदीक्षागुरुं श्रेष्ठदं त्वां कविं बुद्धिनाथं कवीनां नमामि ॥ ३ ॥

हे विभो ! आप व्यास-शिष्य आदि विद्या-विशिष्ट प्रियजनों को अनेक विद्या प्रदान करने वाले और सबके आदिपुरुष हैं । महाशाक्त मन्त्र की दीक्षा के गुरु एवं श्रेष्ठ वस्तु प्रदान करने वाले, कवियों में बुद्धि के स्वामी उन कवि को मैं प्रणाम करता हूँ ।

विधात्रे त्रयीमुख्यवेदांश्च योगं महाविष्णवे चागमाञ् शङ्कराय ।
दिशन्तं च सूर्याय विद्यारहस्यं कविं बुद्धिनाथं कवीनां नमामि ॥ ४ ॥

जो विधाता (ब्रह्मा जी)- को वेदत्रयी के नाम से प्रसिद्ध मुख्य वेदों का, महाविष्णु को योग का, शंकर को आगमों का, और सूर्यदेव को दिशाओं की विद्या के रहस्य का उपदेश देते हैं, कवियों में बुद्धि के स्वामी उन कवि को मैं प्रणाम करता हूँ ।

महाबुद्धिपुत्राय चैकं पुराणं दिशन्तं गजास्यस्य माहात्म्ययुक्तम् ।
निजज्ञानशक्त्या समेतं पुराणं कविं बुद्धिनाथं कवीनां नमामि ॥ ५ ॥

महाबुद्धि-देवी के पुत्र के प्रति गजानन के माहात्म्य व दिशा-ज्ञान से युक्त एक पुराण का उपदेश देने वाले, तथा अपने ज्ञान की शक्ति से सभी पुराणों को संकलित करने वाले, कवियों में बुद्धि के स्वामी उन कवि को मैं प्रणाम करता हूँ ।

त्रयीशीर्षसारं रुचानेकमारं रमाबुद्धिदारं परं ब्रह्मपारम् ।
सुरस्तोमकायं गणौघाधिनाथं कविं बुद्धिनाथं कवीनां नमामि ॥ ६ ॥

जो वेदों के सार तत्त्व, अपने तेज से अनेक असुरों का संहार करने वाले, सिद्धि-लक्ष्मी एवं बुद्धि को दारा के रूप में अंगीकार करने वाले, और परात्पर ब्रह्म-स्वरूप हैं, देवताओं का समुदाय जिनका शरीर है, तथा जो गण-समुदाय के अधीश्वर हैं, कवियों में बुद्धि के स्वामी उन कवि को मैं प्रणाम करता हूँ ।

चिदानन्दरूपं मुनिध्येयरूपं गुणातीतमीशं सुरेशं गणेशम् ।
धरानन्दलोकादिवासप्रियं त्वां कविं बुद्धिनाथं कवीनां नमामि ॥ ७ ॥

जो ज्ञानानन्दस्वरूप, मुनियों के ध्येय तथा गुणातीत ईश्वर हैं, धरा एवं स्वानन्दलोक आदि का निवास जिन्हें प्रिय है, देवताओं के ईश्वर, कवियों में बुद्धि के स्वामी उन कवि गणेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।

अनेकप्रतारं सुरक्ताब्जहारं परं निर्गुणं विश्वसद्ब्रह्मरूपम् ।
महावाक्यसन्दोहतात्पर्यमूर्तिं कविं बुद्धिनाथं कवीनां नमामि ॥ ८ ॥

जो अनेकानेक भक्तजनों को भवसागर से पार करने वाले हैं, लाल कमल के फूलों का हार धारण करते हैं, परम निर्गुण हैं; विश्वात्मक सद्ब्रह्म जिनका रूप है, तत्त्वमसि आदि महावाक्यों के समूह का तात्पर्य जिनका श्रीविग्रह (प्रतिमा) है, कवियों में बुद्धि के स्वामी उन कवि को मैं प्रणाम करता हूँ ।

इदं ये तु कव्यष्टकं भक्तियुक्तात्रि सन्ध्यं पठन्ते गजास्यं स्मरन्तः ।
कवित्वं सुवाक्यार्थमत्यद्भुतं ते लभन्ते प्रसादाद् गणेशस्य मुक्तिम् ॥ ९ ॥

जो भक्ति-भाव से युक्त हो तीनों सन्ध्याओं के समय गजानन का स्मरण करते हुए इस कव्यष्टक का पाठ करते हैं, वे गणेश जी के कृपा प्रसाद से कवित्व, सुंदर, एवं अद्भुत वाक्यार्थ तथा मानव जीवन के चरम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त कर लेते हैं ।

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