मुख्य पृष्ठस्तोत्र सूची

शनि अष्टक


कोणोऽन्तको रौद्रयमोऽथ बभ्रुः कृष्णः शनिः पिङ्गलमन्दसौरिः ।
नित्यं स्मृतो यो हरते च पीडां तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥१॥

सुराऽसुराः किं पुरुषोनगेन्द्रा गन्धर्वविद्याधरपन्नगाश्च ।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥२॥

नरा नरेन्द्राः पशवो मृगेन्द्राः वन्याश्च कीटपतङ्गभृङ्गाः ।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥३॥

देशाश्च दुर्गाणि वनानि यत्र सेनानिवेशाः पुरपत्तनानि ।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥४॥

तिलैर्यवैर्माषगुडान्नदानैर् लोहेन नीलाम्बरदान तो वा ।
प्रीणाति मन्त्रैर्निजवासरे च तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥५॥

प्रयागकूले यमुनातटे च सरस्वतीपूर्णजले गुहायाम ।
यो योगिनां ध्यानगतोऽपि सूक्ष्मः तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥६॥

अन्यप्रदेशात्स्वगृहं प्रविष्टस् तदीयवारे स नरःसुखी स्यात् ।
गृहाद् गतो यो न पुनः प्रयाति तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥७॥

सृष्टा स्वयम्भूर्भुवन: त्रयस्य त्राता हरीशो हरते पिनाकी ।
एतस्त्रिधा ऋग्यजुसाममूर्ति: तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥८॥

शन्यष्टकं यः प्रयतः प्रभाते नित्यं सुपुत्रैः पशुबान्धवैश्च ।
पठेत्तु सौख्यं भुवि भोगयुक्तः प्राप्नोति निर्वाण पदं तदन्ते ॥९॥

अस्वीकरण

इस पटल पर उपलब्ध सभी ग्रंथ व शास्त्र भारतीय ऋषियों, मनीषियों व ज्ञानियों की कृति होने के कारण पूरे भारतीय समाज की धरोहर है । यह संपूर्ण संकलन भिन्न भिन्न ऑनलाइन स्थानों से प्राप्त किया गया है जिनका संदर्भ संबंधित ग्रंथ/शास्त्र के पृष्ठ पर दिया गया है । वज्रकुल या वज्रसंस्कृति का उन पर किसी भी प्रकार का स्वामित्व नही है और ना ही वज्रकुल या वज्रसंस्कृति किसी सामग्री की पूर्ण शुद्धता या सटीकता का उत्तरदायित्व लेते हैं । जो भी स्वयं को उन महान पूर्वजों के वंशज व भारतीय संस्कृति की संतान मानते हैं या उस महान ज्ञान की धरोहर के अध्ययन में रूचि रखते हैं, एक ही पटल पर उपलब्ध यह सारा संकलन उनके हितार्थ वज्रकुल संस्था की ओर से तुच्छ भेंट है 🙏